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ज़िला अमरोहा (पूर्ववर्ती ज्योतिबा फुलेनगर) दिनांक 15 अप्रैल 1997 को राज्य सरकार द्वारा स्थापित किया गया जिसका मुख्यालय अमरोहा नगर को बनाया गया नवनिर्मित जनपद में तीन तहसील शामिल की गयीं – अमरोहा, धनौरा, एवं हसनपुर। वर्तमान में नवीन तहसील नौगावां सादात को मिला कर 04 तहसील जनपद में शामिल हैं । ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में जनपद का वर्तमान क्षेत्र बरेली जनपद में स्थित उत्तरी पांचाल देश, जिसकी राजधानी अहित छत्र थी, के राज्य में शामिल था। कहा जाता है कि मुग़ल शासक शाहजहाँ के शासन के समय में संभल के गवर्नर रुस्तम खां ने एक किले का निर्माण यहाँ कराया था तथा व्यापारियों तथा खेतिहरों को इसके आसपास बसाया था । 474 ई पूर्व अमरोहा क्षेत्र में वंशी साम्राज्य के राजा अमरजोध का शासन था।

तारीखे-अमरोहा नामक ऐतिहासिक पुस्तक में यह उल्लखित है कि अमरोहा में 676 से 1148 ईस्वी तक राजपूत वंश का शासन था। बहराम शाह (1240-42) ने मलिक जलालुद्दीन को अमरोहा के हकीम के पद पर नियुक्त किया। प्राचीन समय में पांचाल प्रदेश के शासकों को, जिसका इस क्षेत्र पर प्रभाव था हस्तिनापुर के कुरु राजाओं द्वारा हटा दिया गया। कुषाण एवं नंद साम्राज्य के पतन के बाद इस क्षेत्र पर मौर्य वंश का भी शासन रहा तत्पश्चात समुद्रगुप्त का शासन स्थापित हुआ। लगभग दो शताब्दियों तक गुप्त वंश का शासन इस क्षेत्र पर रहा। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद कन्नौज के राजा मुखारी का नियंत्रण इस क्षेत्र पर हो गया इसके पश्चात् 606 से 647 ईस्वी तक यह कन्नौज नरेश हर्ष के शासन क्षेत्र में रहा। हर्ष की मृत्यु के पश्चात जनपद का उत्तरी क्षेत्र तोमर वंश के साम्राज्य क्षेत्र में रहा। पृथ्वी राज चौहान की शाहबुद्दीन गौरी के हाथों हार के पश्चात् मुस्लिम प्रभुत्व बढ़ना प्रारम्भ हुआ एवं अन्ततः राजपूत वंश के कठेरिया, बड़गूजर, गौड़, तोमर एवं अन्य क्षेत्रीय वंश सयुंक्त रूप से विदेशी मुस्लिम आक्रमणकारियों के ख़िलाफ़ खड़े हुए।

इनके प्रयासों के बावजूद जनपद के कुछ क्षेत्र में मुस्लिम चौकियां स्थापित हो गयीं। हालांकि मुस्लिमों को पूर्ण सफ़लता तभी मिली जब 1526 ईस्वी में बाबर दिल्ली के सिंहासन पर बैठा। हुमायूँ के कार्यकाल में कुछ समय के लिए क्षेत्र अफगानों, जिसका नेता शेरशाह सूरी था, के प्रभुत्व में आ गया, लेकिन अकबर के कार्यकाल में पुनः मुग़ल शासन के अधीन हो गया। रूहेलाओं ने भी समय-समय पर अपना प्रभुत्व इस क्षेत्र पर बनाये रखा। साथ-साथ मराठाओं ने भी इस क्षेत्र पर समय-समय पर आक्रमण किये परन्तु वह विफ़ल रहे। बाद में यह क्षेत्र अवध के नियंत्रण में आ गया। परन्तु 1801 में यह क्षेत्र ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अधीन हो गया।

वासुदेव मंदिर, तुलसी पार्क, गजरौला, रजाबपुर, कंखाथर और तिगरी आदि यहां के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से है। अमरोहा कृषि उत्पादों की मंडी होने के साथ-साथ अमरोहा में मुख्यतः हथकरघा वस्त्र, मिट्टी के बर्तन उद्योग व चीनी की मिलें हैं। अमरोहा रेल मार्ग से मुरादाबाद व दिल्ली से जुड़ा हुआ है। अमरोहा में महात्मा ज्योतिबा फुले विश्वविद्यालय बरेली से संबद्ध महाविद्यालयों के अलावा मुस्लिम पीर शेख़ सद्दू की दरगाह भी है।


देखने योग्य स्थल


अमरोहा

अमरोहा शहर नव निर्मित ज़िले का मुख्यालय है जो मुरादाबाद मण्डल से 30 किलोमीटर की दुरी पर है। लखनऊ-दिल्ली रेलवे लाइन पर स्थित है पश्चिम में मुरादाबाद तथा पूर्व दिशा में दिल्ली के लियों को प्रचुर मात्रा में वाहन तथा रेल गाड़िया उपलब्ध है। ऐसा कहा जाता है कि जनरल शारफुद्दीन यहां आए थे और स्थानीय लोगों ने आम और मछलियों को प्रस्तुत किया था। इस प्रकार उन्होंने शहर का नाम आम-रोहू रख दिया जिसे अब अमरोहा कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि इस शहर को 3000 साल पहले अमरजिद द्वारा बनाया गया था | हस्तिनापुर की तरह ही दिल्ली के राजा पृथ्वी राज की बहन अम्बा देवी के पुनर्निर्माण के बाद वहां मौजूद थे। बाद में यह तुगिस का राज्य बन गया जो मुगल के आगमन तक तुगिस ने यहां शासन किया। अमरोहा के महत्वपूर्ण स्थान निम्नलिखित हैं:

वासुदेव मन्दिर और तुलसी पार्क

बायें का कुआ

नसीरुद्दीन साहिब की मजार


दरगाह भूरे शाह

मजार शाह विलायत साहब


गजरौला

गजरौला राष्ट्रीय राजमार्ग नम्बर 24 में स्थित है। यह स्थान मुरादाबाद से 53 किलोमीटर और दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर की दूरी पर है। यह शहर महत्वपूर्ण औद्योगिक शहर के रूप में विकसित हो रहा है। कई कुटीर व लघु उद्योग जैसे हिन्दुस्तान लीवर का शिवालिक सेलोलॉस, चड्डा रबर, वाम ओरगेनिक आदि यहां पर स्थित है।

तिगरी

गंगा नदी पर स्थित तिगरी अमरोहा से लगभग 28 किलोमीटर की दूरी पर है। प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर यहां प्रसिद्ध गंगा मेले का आयोजन किया जाता है। लाखों की संख्या में भक्त इस पवित्र जल में स्नान करने के लिए आते हैं।